गुरुवार, 3 नवंबर 2011


वह पत्र की तरह आया


वह पत्र की तरह आया

उसकी आवाज
सुदूर पहाड़ियों से आ रही अनुगूँज की तरह थी

उसकी तलहथी
हिम की तरह ठंडी लगी
और जाबान
आत्मीयता की उष्मा से सराबोर

वह मेरे सामने बैठा
अपने को एक एलबम की तरह खोल रहा था

उसके दिमाग में
भावी योजनाओं के पन्ने खुल रहे थे

वह थोड़े समय में
बहुत कुछ कह देना चाहता था

उसने कहा भी
समझा भी
समझाया भी
और जाने के समय आँखों से मुस्कुराया भी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें