सोमवार, 26 सितंबर 2011

बाजार की भाषा

बाजार की भाषा

मैंने गौर किया
बाजार मुझे और मेरी भाषा को
बड़े ध्यान से पढ़ रहा है

बाजार के आँगन में
पटना और त्रिवेन्द्रम
एक ही भाषा बोलते हैं

एक दिन बंगलोर के बाजार में
केले की ओर इशारा करने पर
बाजार ने दो का सिक्का उछाल दिया था
और मैं चौक गया था
बाजार के भाषा-ज्ञान पर

बाजार आपकी भाषा को समझेगा
बशर्ते आपको मुद्रा की भाषा आती हो

बाजार उदार-दिला है
सबका दाम सलिके से लगाता है

बाजार
सब कुछ सुनते हुए भी कुछ नहीं सुनता

बाजारू मुहाबरे में
यह नैतिकता का नया दर्शन  है

मनुष्यता के रोदन पर
यह मंद-मंद मुस्कुराता है

इसकी मुस्कुराहट बड़ी अर्थमय है

आप फड़फड़ाएं तो भी न बोल पाएं
आप खुश हो जाएं तो भी न बोल पाएं


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें