जिंदगी, किताबी नहीं होती
जिंदगी, किताबी नहीं होती
यह बात कैसे समझाया जाय दोस्तों को
उन भावुक पाठकों को
जो सुलझा लेना चाहते हैं जिंदग को
किताबों के पन्नों में
जो होते देखन चहते हैं क्रांति
किताबी विचारों की तरह
वे यह नहीं मानना चाहते
कि जिंदगी क्रांति से बड़ी होती है
उलट इसके
उनके लिए जिंदगी
क्रांति के दहलीज पर
जीवन की भीख मांगती खड़ी होती है
जिंदगी की दौड़ में
पिछड़ते किताबी सच को
मिल सकती है सहानुभूति
लेकिन होगी जय-जय
दुनियादारी की,
मायावी की
दोस्तों
जिंदगी, किताबी नहीं होती
गरीबी के मूक खंडहर – लालगढ़ में
राजपथ पर चलने वाले
पगडंडियों पर चलना पसंद नहीं करते
पता नहीं ये कहाँ-कहाँ ले जाएं
बिना यह सोचे – समझे
कि इस पर कभी-कभार चलने वाले
सफेदपोशों के दिमाग का जायका खराब हो सकता है
भूख-गरीबी भी कोई देखने की चीज है
हरीतिमा जंगल की अच्छी लगती है
इसका मतलब यह तो नहीं
कि जंगल में रहने वाले भी अच्छे लगें
सबकी अपनी-अपनी रुचि है
चीटियों के अंडों से
किसी का पेट भर जाता हो
तो सर्वहारा दल को भला
इससे क्या शिकायत हो सकती है
और क्रांतिकारी दल को
कुछ हत्याएं करने के एवज में
अपने सपने पूरे होते हुए दिखें
इससे दूसरों को क्यों एतराज हो
आखिर, सत्ता बंदूक की नली से ही निकलती है
गोली कहीं भी चले
चीत्कारती है झोपड़ी ही
इससे कुछ लोगों की आवाज बुलंद हो जाती है
कुछ गाँव नजरबंद हो जाते हैं अपने ही घरों में
कुछ गाँव भाग खड़े होते हैं जंगल में
जरुरी है प्रजातंत्र का यह पराक्रम
खिला रहे
शोषण का लाल-परचम
गरीबी के मूक खंडहर
लालगढ़ में
बंद
आज एक और बंद
सुनते हैं बंद से
हमारी आवाज बुलंद हो जाती है
हमारे अधिकार स्वतंत्र होकर टहलने लगते हैं
कर्तव्य को उस दिन अवकाश मिल जाता है
नगर का सबसे बदनाम व्यक्ति
विशेष आमंत्रित व्यक्तित्व में तब्दील हो जाता है
उसे पूरी छूट होती है
घूम-घूम कर
तांडव का नया-नया प्रयोग करने का
मानवाधिकारीगण पुलकित हैं
मानवी-विध्वंस के इस प्रयोगी संत्रास से
जलती बसें, हुंकार भरती आतंककारी भीड़
आतंकित जनमानस का दीन व्यक्तित्व
मानवाधिकार की वापसी है
मैंने सुना है
बंद सर्वहारा का सबसे घातक हथियार है
परन्तु, मैं कहना चाहता हूँ
बंद सर्वहारा के खातमे का सबसे माकूल हथियार है
जिंदाबाद – जिंदाबाद
बंद जिंदाबाद