आस्था
माँ
मनाती आ रही है वर्षों से
जिऊतिया का पर्व
इस विश्वस के साथ
कि होंगे भगवान खुश
उसके अन्न-जल ग्रहण न करने से
और देंगे उसकी संतानों को एक लंबी उम्र
बचाएंगे आने वाली मुसीबतों से
वह शास्त्रों के पचड़े में नहीं पड़ती
उसके शास्त्र वे गल्प–कथायें हैं
जो वह बचपन से सुनती आ रही है
घर-परिवार से, गाँव-समाज से
आज जब वह
पोते-पोतियों वाली हो गई है
फिर भी करती है खर-जिऊतिया
चाहती है दे देना
अपनी शेष उम्र भी अपनी संतानों को
नही चाहती बदले में कुछ
नहीं चाहती सुनना कोई तर्क
अपनी आस्था के खिलाफ
वह कुछ भी कर सकती है
जीवन दाँव पर लगा सकती है
शर्त केवल इतनी है
कि उसकी संतानों को मिले लंबी उम्र
संभालकर रखती है वह
अपने जीवित-बंधन-बाबा को
उसे पूरा विश्वास है
कि उसके गुजर जाने पर भी
जीवित-बंधन-बाबा
बचाए रखेंगे उसकी संतानों को मुसीबतों से
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