आयताकार दीवारें
कभी मेरी खुली आँखों में
तैरने लगता है
जमीन का एक अपना टुकड़ा
कभी मेरे कच्चे सपनों में
खड़ी होने लगती है
आयताकार दीवारें
कभी मेरे मन के आकाश में
फैलने लहते हैं छप्पर
कभी मेरे विचारों के दर्पण में
लेने लगते हैं आकार
रोशनी आर हवा के कंधों पर सवार
हाथ धरे रोशनदान
और कभी मेरी संवेदना
दूर आकार ले रही
आकृतियों की
राह देखने लगती है
जब ये सभी
मिलकर एक कोलाज बनाते हैं
तब मैं
अपने को भावी घर में बैठा पाता हूँ।
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