बुधवार, 2 नवंबर 2011


खत्म नहीं हुई है अभी

पानी से दबी थी एक हरी-भरी धरती

इंसानियत
इस धरती पर
तलाश रही थी जमीं
पाँव के नीचे

वह तलाश रही थी जमीन
और जमीन
उससे उतनी ही बिछुड़ती जा रही थी

पाँव और धरती के बीच
जल का सैलाब मोटा होता जा रहा था
और मोटी होती जा रही थी कोसी

जमीन पर कोसी थी
या जमीन कोसी में
कह पाना मुश्किल था

जो बात कही जा सकती थी
वह थी कोसी की अपरमीत तांडवत उल्लास
और उनके अंतहीन आँसुऔं की ताजी कहानी

यह कहानी
अभी खत्म नहीं हुई है
फिर शुरू होगी
अगले साल कहीं और से

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